Friday, June 29, 2012

आजकल फिर से

कुछ  तन्हा हूँ आजकल फिर से
तुझे याद करता हूँ आजकल  फिर से 


ज़िंदगी पर  भरोसा सा नहीं आजकल फिर से 
मौत सा कुछ ढूँढता हूँ आजकल फिर से 


मेरे दोस्त  मुझे देख कर कतराते हैं
मेरे पास आने से घबराते हैं
अपने उजाले बड़े प्यारे हैं उन्हें
मेरे अंधेरों से वो डर  जाते हैं

साथ छूटा है आजकल फिर से
ग़म का डेरा है आजकल फिर से

Thursday, June 7, 2012

बहुत दिनों से
शब्द गुम थे
रूठ गए थे शायद
मनाने उन्हें मैं लौट आया हूँ
सोचता हूँ
थोडा डूब ही जाऊं जिंदगी में
मानसर के कमल हैं
किनारे तो मिलेंगे नहीं 

Friday, September 30, 2011

सीधी बात

हम सीधे किसीसे क्यूँ नहीं कह पाते?
दो पल का साथ चाहिए तुम्हारा
क्यूँ जनम-जन्मों के साथ की बातें करते हैं

क्यूँ हम नहीं कह सकते,
"तुम्हारा साथ चाहिए, थोड़ी देर..."
"कुछ देर बाद हमारे रास्ते अलग हो जायेंगे।"
"मुझे याद मत करना।"
लगता है सीधी बातों के लिए शब्द नहीं हैं हमारे पास
भाषा हमें हरा देती है

Monday, December 1, 2008

मुझे लाश मत समझना...

जख्म अभी हरा है
लहू थमा नही है
रुक रुक के बह रहा है
अभी जमा नही है
अब तक हज़ार धोके
मेरा दिल उठा चुका है
अपनो ने दिए है जो
वो जख्म भुला चुका है
इक आध याद अपनी
मेरे दिल को तुम भी दे दो
मेरा जिस्म बस है घायल
पर रूह जवां-रवाँ है
मुझे लाश मत समझना
के साँस चल रही है...

Tuesday, September 2, 2008

कहीं दूर निकल गया था मैं
ख़ुद के अन्दर कहीं गुम गया था मैं

इसके पहले के ख़ुद को भुला ही देता
खुदा ने अचानक तुझसे मिलाया

अब भी डर बदर घूमता हूँ मैं
पर अब ख़ुद को खोजने में लगा हूँ मैं
वो जो जलता है
तो जलने दो
परवाना है

उसकी किस्मत ही
जल जल के
फना होना है

तुम शमा अपनी आँखों की
रखो रौशन
रास्ता मुश्किल है
उसे दूर बहुत जाना है

Wednesday, February 28, 2007

thoda sa roomani...


saans lete hain hum poori nahin
thodi thodi

dil ki baatein bhi
dil mein hi reh jaati hai
shabd kuch kehte hain
aur kuch aankh
thodi thodi

waqt
bhula deta hai
har chot ko
lekin
phir bhi
tees deti hai koi faans kahin
thodi thodi

uski mehfil mein bhi
rehta hoon
usse tanha
khud se hi karta hoon
uski baat
thodi thodi...

साँस लेते हैं हम पूरी नहीं
थोड़ी थोड़ी

दिल की बातें भी
दिल में ही रह जाती है
शब्द कुछ कहते हैं
और कुछ आँख
थोड़ी थोड़ी

वक़्त भुला देता है
हर चोट को
लेकिन फिर भी
टीस देती है कोई फ़ांस कहीं
थोड़ी थोड़ी

उसकी महफ़िल में भी रहता हूँ
उससे तन्हा
ख़ुद से ही करता हूँ
उसकी बात
थोड़ी थोड़ी...