Monday, December 1, 2008

मुझे लाश मत समझना...

जख्म अभी हरा है
लहू थमा नही है
रुक रुक के बह रहा है
अभी जमा नही है
अब तक हज़ार धोके
मेरा दिल उठा चुका है
अपनो ने दिए है जो
वो जख्म भुला चुका है
इक आध याद अपनी
मेरे दिल को तुम भी दे दो
मेरा जिस्म बस है घायल
पर रूह जवां-रवाँ है
मुझे लाश मत समझना
के साँस चल रही है...

Tuesday, September 2, 2008

कहीं दूर निकल गया था मैं
ख़ुद के अन्दर कहीं गुम गया था मैं

इसके पहले के ख़ुद को भुला ही देता
खुदा ने अचानक तुझसे मिलाया

अब भी डर बदर घूमता हूँ मैं
पर अब ख़ुद को खोजने में लगा हूँ मैं
वो जो जलता है
तो जलने दो
परवाना है

उसकी किस्मत ही
जल जल के
फना होना है

तुम शमा अपनी आँखों की
रखो रौशन
रास्ता मुश्किल है
उसे दूर बहुत जाना है