Monday, December 1, 2008

मुझे लाश मत समझना...

जख्म अभी हरा है
लहू थमा नही है
रुक रुक के बह रहा है
अभी जमा नही है
अब तक हज़ार धोके
मेरा दिल उठा चुका है
अपनो ने दिए है जो
वो जख्म भुला चुका है
इक आध याद अपनी
मेरे दिल को तुम भी दे दो
मेरा जिस्म बस है घायल
पर रूह जवां-रवाँ है
मुझे लाश मत समझना
के साँस चल रही है...

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